Monday, August 2, 2010

ek inka bachpana hai

एक इनका बचपना है
एक बचपन था हमारा

थे बहुत पापड़ कि हम
दिन रात जिनको बेलते थे
हम खिलौनों से नहीं
हमसे खिलौने खेलते थे
शेर हाथी दोस्तों के
तोड़ते थे दिल हमारा

एक इनका बचपना है
एक बचपन tha हमारा

Sunday, August 1, 2010

mahamoorkh vo

महामूर्ख वो भारतवासी
जो इनको कहते नालायक
दुनिया में सबसे काबिल हैं
अपने सांसद और विधायक

चोरी ये करवा सकते हैं
डाका ये डलवा सकते हैं
चाहें तो अपहरण करा लें
चाहे तो मरवा सकतें हैं
संविधान कि मर्यादा को
चाहे जहाँ फाड़ सकते हैं
भाषण वो भी नैतिकता पर
अच्छा भला झाड़ सकते हैं
हर गुनाह में माहिर हैं ये
चाहे जो अपराध करा लो
सच्चाई पर प्रवचन ले लो
अच्छाई पर लेख लिखा लो

इतने हरफनमौला नेता
और कहीं तुम पा न सकोगे
इन्हें गलियां मत दो प्यारे
बात हमें लगती दुखदायक
दुनिया में सबसे काबिल हैं
अपने सांसद और विधायक

navayug mein

नव युग में सब लड़कियां रखती है ये आस
शादी उस घर हो जहाँ गुजर चुकी हो सास
गुजर चुकी हो सास अगर होवे भी जिन्दा
हफ्ते भर में मरे लगा फंसी का फंदा
मर कर जो जिंदगी बहू कि स्वर्ग बनावे
कह मिश्रा कवि ऐसी saas  बहू को भावे

lakh takleefen sahi par

लाख तकलीफें सही पर
अब चलो हम मुस्कुराएँ

घाव  सीने में लगे हैं
हो गयी है पीर गहरी
जिंदगी ऐसी कि जैसे
जेठ कि तपती दुपहरी
पर चलो हिम्मत करें हम
फूल की बगिया लगायें

लाख तकलीफें सही पर
अब चलो हम मुस्कुराएँ

dhire dhere mat le siski

धीरे धीरे मत ले सिसकी कौन सुनेगा ?
चीखें मार मार कर रो ले
अगर बहुत ज्यादा मन है
यूँ रोने से अधिक जरूरी
रोने का विज्ञापन है

सचमुच के रोने वाले तो
अब तक रोते बैठे हैं
झूठ मूठ रोने वालो का
सारा काम टनाटन है 
आंसू मोती बह जायेंगे
mitti men mil जायेंगे
अगर न koi dekhega तो कौन chunega 
धीरे धीरे मत ले सिसकी कौन सुनेगा