एक इनका बचपना है
एक बचपन था हमारा
थे बहुत पापड़ कि हम
दिन रात जिनको बेलते थे
हम खिलौनों से नहीं
हमसे खिलौने खेलते थे
शेर हाथी दोस्तों के
तोड़ते थे दिल हमारा
एक इनका बचपना है
एक बचपन tha हमारा
Monday, August 2, 2010
Sunday, August 1, 2010
mahamoorkh vo
महामूर्ख वो भारतवासी
जो इनको कहते नालायक
दुनिया में सबसे काबिल हैं
अपने सांसद और विधायक
चोरी ये करवा सकते हैं
डाका ये डलवा सकते हैं
चाहें तो अपहरण करा लें
चाहे तो मरवा सकतें हैं
संविधान कि मर्यादा को
चाहे जहाँ फाड़ सकते हैं
भाषण वो भी नैतिकता पर
अच्छा भला झाड़ सकते हैं
हर गुनाह में माहिर हैं ये
चाहे जो अपराध करा लो
सच्चाई पर प्रवचन ले लो
अच्छाई पर लेख लिखा लो
इतने हरफनमौला नेता
और कहीं तुम पा न सकोगे
इन्हें गलियां मत दो प्यारे
बात हमें लगती दुखदायक
दुनिया में सबसे काबिल हैं
अपने सांसद और विधायक
जो इनको कहते नालायक
दुनिया में सबसे काबिल हैं
अपने सांसद और विधायक
चोरी ये करवा सकते हैं
डाका ये डलवा सकते हैं
चाहें तो अपहरण करा लें
चाहे तो मरवा सकतें हैं
संविधान कि मर्यादा को
चाहे जहाँ फाड़ सकते हैं
भाषण वो भी नैतिकता पर
अच्छा भला झाड़ सकते हैं
हर गुनाह में माहिर हैं ये
चाहे जो अपराध करा लो
सच्चाई पर प्रवचन ले लो
अच्छाई पर लेख लिखा लो
इतने हरफनमौला नेता
और कहीं तुम पा न सकोगे
इन्हें गलियां मत दो प्यारे
बात हमें लगती दुखदायक
दुनिया में सबसे काबिल हैं
अपने सांसद और विधायक
navayug mein
नव युग में सब लड़कियां रखती है ये आस
शादी उस घर हो जहाँ गुजर चुकी हो सास
गुजर चुकी हो सास अगर होवे भी जिन्दा
हफ्ते भर में मरे लगा फंसी का फंदा
मर कर जो जिंदगी बहू कि स्वर्ग बनावे
कह मिश्रा कवि ऐसी saas बहू को भावे
शादी उस घर हो जहाँ गुजर चुकी हो सास
गुजर चुकी हो सास अगर होवे भी जिन्दा
हफ्ते भर में मरे लगा फंसी का फंदा
मर कर जो जिंदगी बहू कि स्वर्ग बनावे
कह मिश्रा कवि ऐसी saas बहू को भावे
lakh takleefen sahi par
लाख तकलीफें सही पर
अब चलो हम मुस्कुराएँ
घाव सीने में लगे हैं
हो गयी है पीर गहरी
जिंदगी ऐसी कि जैसे
जेठ कि तपती दुपहरी
पर चलो हिम्मत करें हम
फूल की बगिया लगायें
लाख तकलीफें सही पर
अब चलो हम मुस्कुराएँ
अब चलो हम मुस्कुराएँ
घाव सीने में लगे हैं
हो गयी है पीर गहरी
जिंदगी ऐसी कि जैसे
जेठ कि तपती दुपहरी
पर चलो हिम्मत करें हम
फूल की बगिया लगायें
लाख तकलीफें सही पर
अब चलो हम मुस्कुराएँ
dhire dhere mat le siski
धीरे धीरे मत ले सिसकी कौन सुनेगा ?
चीखें मार मार कर रो ले
अगर बहुत ज्यादा मन है
यूँ रोने से अधिक जरूरी
रोने का विज्ञापन है
सचमुच के रोने वाले तो
अब तक रोते बैठे हैं
झूठ मूठ रोने वालो का
सारा काम टनाटन है
आंसू मोती बह जायेंगे
mitti men mil जायेंगे
अगर न koi dekhega तो कौन chunega
धीरे धीरे मत ले सिसकी कौन सुनेगा
चीखें मार मार कर रो ले
अगर बहुत ज्यादा मन है
यूँ रोने से अधिक जरूरी
रोने का विज्ञापन है
सचमुच के रोने वाले तो
अब तक रोते बैठे हैं
झूठ मूठ रोने वालो का
सारा काम टनाटन है
आंसू मोती बह जायेंगे
mitti men mil जायेंगे
अगर न koi dekhega तो कौन chunega
धीरे धीरे मत ले सिसकी कौन सुनेगा
Subscribe to:
Posts (Atom)