Sunday, April 24, 2011

upar ham kaise uthen

ऊपर हम कैसे उठें

ऊपर हम कैसे उठें  
टूटी हैं सीढियाँ
पीढा भर जमीन को
लड़ीं कई पीढियां

बैल बिके खेत बिके 
और बिके बर्तन 
किन्तु सोच में नहीं 
आया परिवर्तन 
अमन चैन की फसल
चाट गयीं टिड्डियाँ

थाना-कचहरी 
कुछ भी न छूटा है 
वजह मात्र इतनी है 
गड़ा एक खूंटा है 
खूंटे ने दिलों में भी 
गाड़ी हैं खूँटियाँ 

गावों के आदमी 
भी अजीब दीखे हैं 
दुखी देख सुखी हुए 
सुखी देख सूखे हैं 
तोड़ दी समाज ने 
रीढ़ों की हड्डियाँ