ऊपर हम कैसे उठें
ऊपर हम कैसे उठें
ऊपर हम कैसे उठें
टूटी हैं सीढियाँ
पीढा भर जमीन को
लड़ीं कई पीढियां
बैल बिके खेत बिके
और बिके बर्तन
किन्तु सोच में नहीं
आया परिवर्तन
अमन चैन की फसल
चाट गयीं टिड्डियाँ
थाना-कचहरी
कुछ भी न छूटा है
वजह मात्र इतनी है
गड़ा एक खूंटा है
खूंटे ने दिलों में भी
गाड़ी हैं खूँटियाँ
गावों के आदमी
भी अजीब दीखे हैं
दुखी देख सुखी हुए
सुखी देख सूखे हैं
तोड़ दी समाज ने
रीढ़ों की हड्डियाँ
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